TUM THODI DER AUR THEHER JAO!
तुम आये ..मगर आ कर भी नहीं आये....
तुम से कहा आज तो ठहर जाओ ....
तुम्हें महसूस तो कर लूं....
फिर तुम्हारे मिलने तक ...
अपनी आंखों में तो तुम्हें भर लूं......
लेकिन तुम यूं चल दिए...
जैसे दिन गुजर जाता है ......
जैसे मुठ्ठी से रेत
गुज़र जाती है.....
तुम तो ना ठहरे .......
बस ठहर गई खामोशी.....
जो बातें तुम से कहनी थी वो सारी बातें ठहर गई .....
सूना रह गया घर का कोना ...
जहां पर तुम्हारी खुशबू अभी भी
महक रही है.....
तुम्हारी वो यादे जो अभी भी बिखरी हुई है ......
जिसे मैं समेट रही हूं अपने दोनों
हाथों से और संजो रही हूं.... तुम्हारे आने तक ......
तुम्हारी बातें ... तुम्हारा एहसास ... तुम्हारी छूअन सब
कुछ तो चल रही हैं मेरे साथ .....
मैं जहां भी जा रही हूं!
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